चंद्रकांत





प्रकाशन- कविताएँ काव्यम्, उत्तरा, पक्षधर, परिकथा, अभिनव कदम एवं वर्तमान साहित्य में प्रकाशित। सांस्कृतिक रिपोर्ट हंस, समकालीन जनमत, कथादेश, कथन, वर्तमान साहित्य, उद्भावना में प्रकाशित। साक्षात्कार दस्तक एवं विदूषक में प्रकाशित।
संप्रति -अध्यापन

‘कविता’ को लेकर आम तौर पर सभी कवि जरूर कभी न कभी चिन्तन-मनन करते हैं और इस पर कविताएं भी लिखते हैं. क्या कविता केवल शब्दों का जाल मात्र है. नहीं, कत्तई नहीं. अगर ऐसा होता तो जो कुछ भी कविता के नाम पर इस दुनिया में लिखा जाता वही कविता हो जाती. एक प्रश्न तो उठता ही है कि आखिर ‘बेहतर कविता कैसी होनी चाहिए.’ क्यों कुछ कविताएँ आम आदमी के जेहन में पूरी तरह रच-बस जाती है. दरअसल जो कविता हृदय की पीड़ा को सुनती-गुनती है. जिसमें सपनों के संग उड़ान भरने की सामर्थ्य के साथ-साथ यथार्थ के धरातल पर चलने की भी ताकत होती है. जिसमें उत्पीड़क व्यवस्था को बदल डालने का जादुई आह्वान होता है, जिसमें इस दुनिया को एक शोषणमुक्त दुनिया का रूप दे सकने का आईना होता है, वही बेहतर कविता होती है. वही कविता कालजयी कविता बन पाती है. कुछ ऐसे ही मनोभावों को संजोये-सवारे हुए हुए हैं हमारे आज के युवा कवि चन्द्रकान्त. पहली बार पर प्रस्तुत है चन्द्रकान्त की कविताएं. 

        

मेरे दोस्त


क्यों आये
मेरी बस्ती में
तुम, बुर्जुआ
क्या तुम्हें पता नहीं
तुम्हारे आने से
मेरी बस्ती की जीवन धारा रूक सकती है
हरियाली की प्रकृति
बदल सकती है
तुम्हारे जैसे तथाकथित स्वनामधन्य
विचारक
जब यहाँ आते हैं
मैं डर जाता हूँ
जानते हो क्यों?
मैंने महसूसा है
तुम्हारे आने से श्रम के गीतों का गूंजना बन्द हो जाता है
एक अनागत संकट की
छाया घेर लेती है सम्पूर्ण परिवेश को
जीवन की बहुलता, पृथकता
सूख जाती है
पुष्पित-पल्लवित होने के पहले ही
क्यों आते हो तुम
तुम्हारा रूप तुम्हारा सौन्दर्य
तो बाजार के लिए है
जहाँ
जीवन उत्पाद होता है
बेचने खरीदने के लिए
स्पन्दनहीन
यह बस्ती जीवित है अभी
इसके सौंदर्य में
संवेदना के रिश्ते हैं
अंचल की करूणा में गीतों के बोल
और संघर्ष की कटीली राहों
पर थिरकते नृत्य करते
उत्साहित पग
तुम्हारी दुनिया दूसरी है दोस्त
यहाँ न तो बाजार है
न विज्ञापन
यहाँ तो रिश्तों का है
अपनापन।





फूलमनी


फूलमनी
अपने ही घर में
हाथों में जंजीर
और पैरों में बेड़ियाँ कसे
अपनी ही तरह
कई फूलमनियों के साथ
दीवारों के घेरे में

तुम्हारे घर के चारों ओर
फैली है प्रकृति की सुरम्यता,
फूल, फल, नाज
मिट्टी के अन्दर
दबे हैं खनिज
हीरे, पन्ने, पुखराज

क्यों? क्यों? फूलमनी
भूखी प्यासी लेटी हो
बंधे हाथ-पैर लिए
जबकि तुम्हारी सम्पदाओं से
मालामल हो रहे हैं लुटेरे

फूलमनी
कब तक चुप रहोगी
आंसू बहाओगी
तुम्हें आज न कल
तोडनी तो होगी जंजीरे, बेड़ियाँ
लड़नी तो होगी ही,
उठो फूलमनी
सूरज और प्रकृति
दोनों तुमसे आस लगाये हैं।




कलियों को खिलने दो


लहराने दो
हवाओं में फूलों को
झूमने दो टहनियों को
राग, रंग, ताल पर
वंशी और मादल के राग पर

खिलने दो
कलियों को
अपनी पूर्ण प्रभा से
वन उपवन में
भरने दो जीवन
का संगीत
व्यापक हो प्रेम का परिवेश

गूंजने दो
भंवरों को स्वछन्द
बन्धन मुक्त
सृजन का स्वप्न लिए

जानते हो मीत
बंधन में बंधना मृत्यु है
और स्वतंत्र होना जीवन
मृत्यु को जीतने के लिए
जीवन में भरो उर्जा
और सौन्दर्य सृजन के लिए
बनो अग्रसर, अनवरत




संवाद


गुरू ने कहा
उपने शिष्य से
तुमने तो मुझे गुरू माना
लेकिन मैने तुम्हें शिष्य नहीं
जानते हो क्यों?
तुम्हारी कविता में
कल्पना, चित्र, विम्ब, प्रतीक नहीं है
संवेदना तो बिल्कुल ही नहीं
यह तो सूखी नदी सी कविता है
जो मेरा शिष्य कत्तई नहीं लिख सकता

माना कि पेड़ हैं, हरियाली है
वैज्ञानिक तरीके से उगाये गए
शिष्य, साहित्य विज्ञान नहीं होता
नहीं बोनसाई

तुम्हारी नदियाँ कलकल नहीं करती
, ही रातें रोती हैं
, ही फूल बतकही करते हैं।
और न, ही मासूम आँखें
भूख का दर्द वयाँ करती है
तुम्हारी दुनिया तो
सपाट और निष्प्राण है
केवल

शब्दों के जाल मत बुनो,
हृदय की पीड़ा को गुनो,
दुनिया को पढ़ो,
और जिओ एक सपना
जिससे दुनिया बदली जा सके
सृजित हो नया संसार
फिर उगे लहलहाते,
महकते
खिलखिलाते पत्ते।





कामरेड बनेगा

पिता होता है अमीरी
माँ होती है गरीबी
कोख से जन्मा बच्चा
भटकेगा फुटपाथ पर
जब कभी होश आयेगा
किसी के हाथों गिरबी बन
कारखाने में जायेगा
सोना उगाएगा
भूख मिटायेगा
(जो कभी नहीं मिटती)
पता चलेगा कब उसे
बाल-शोषण के बारे में
वह तो जन्म से ही जवान पैदा हुए
दूसरों के लिए श्रम बन कर
मालिकों से लड़ेगा
कामरेड बनेगा
बात करेगा मजदूरों के
हक दिलाने की

सवाल यह है कि
पूंजीपतियों की दुनिया में
तकदीर लिखता कौन है?
पूंजीपति, सरकार या कामरेड
हम इतने भ्रमित क्यों हैं?
सब कुछ तो साफ-साफ हैं
लड़नी होगी हमें
अपनी लड़ाई स्वयं
संजीदगी से


संपर्क-

श्रीकृष्ण पब्लिक स्कूल,  

ओ.सी.रोड, बिष्टुपुर,

जमशेदपुर, पिन-831 001

मोबाईल-  09135362244

टिप्पणियाँ

  1. वाह ,लाजवाब , ढेरो शुभकामनाये ,

    जवाब देंहटाएं
  2. संवेदनशील हृदय के सुन्दर उदगार!
    अपनी लडाई स्वयं लड़ने को प्रेरित करती कवितायेँ!

    कवि को शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'।

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'