संगीत संसार : सुनें, गुनें और अपनी दुनिया बुनें




नवोदित सक्तावत 

नवोदित सक्तावत का जन्म 4 अप्रैल 1983 को झाबुआ जिले में हुआ लेकिन इनकी परवरिश उज्जैन में हुई। सक्तावत पेशे से पत्रकार हैं। लेखन के क्षेत्र में ये एक दशक से सक्रिय हैं। वर्तमान में दैनिक भास्कर हिंदी समाचार पत्र में संपादकीय प्रभाग में सीनियर सब एडीटर के पद पर कार्यरत। सिनेमा, संगीत, समाज व खेल पर स्वतंत्र लेखन। 

संगीत का हमारे मानस पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बेहतर संगीत हमें अनायास ही अपनी तरफ आकृष्ट कर लेता है। हमारी संस्कृति में सगीत आदि से अन्त तक भरा पड़ा है। जन्म से ले कर मृत्यु तक के गीत लोक में प्रचलित हैं। यही नहीं ऋतुओं के गीत, कृषि कार्यों से जुड़े हर अवसरों जैसे बुवाई, रोपनी, सोहनी, गुडाई और कटाई तक के गीत भी हमारी परम्परा में संचित हैंसंगीत पर आजकल गहन अध्ययन कर रहे हैं हमारे मित्र नवोदित सक्तावत। आप पहली बार पर समय-समय पर नवोदित के संगीत पर लिखे गए आलेख पढ़ते रहेंगे। इसी श्रंखला में प्रस्तुत है पहली कड़ी 'संगीत संसार: सुनें, गुनें और अपनी दुनिया बुनें'। तो आईए पढ़ते हैं संगीत पर यह रोचक आलेख         
संगीत संसार : सुनें, गुनें और अपनी दुनिया बुनें 


जिस प्रकार का हम संगीत सुनते हैं, हमारा मानस भी वैसा ही बनता जाता है। चित्त का निर्माण होता है। तेज संगीत हमें चपल बनाता है और मद्धम संगीत हमें गति के बीच सुखद ठहराव का अहसास देता है। इंसानों में जंगल में लोगों को पहचानना आसान हो जाए यदि हम किसी का पसंदीदा संगीत कहीं से जान लें। परिपक्व संगीत हमें गूढ़ बनाता है और चलताउ संगीत हमारे खोखलेपन, सतहीपन, उथलेपन और छोटेपन की चुगली कर देता है। यदि हम लगातार गमजदा गीत सुनते जाएं तो हम एक थके, बोझिल और हारे हुए व्यक्ति बन जाएंगे। हमारी सूझबूझ को लकवा लग सकता है और हमारी होशियारी हांफती मालूम पड़ सकती है।  

संगीत की तरंगे, गायकों की आवाज और शब्दों का हमारे मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारा अवचेतन कब इसे पकड़ लेता है, हम जान नहीं पाते। और, हमारा सोचने का नजरिया, चीजों को देखने का ढंग कब, कैसे परिवर्तित होता जाता है, बता पाना कठिन है। तलत महमूद को लगातार सुनने से कोई भी आदमी जीते जी खत्म हो सकता है। वह बहुत घातक है। वह हमारा हाथ थाम कर जिस पहचानशून्य जगत में ला कर छोड़ देता है, वहां से लौटना बहुत मुश्किल होता है। रफी के गीत सुनते रहने से व्यक्ति कलात्मक हो जाता है। माधुर्य और सौंदर्य से भरा। किशोर के गीत सुनने से खिलंदड़ और कदाचित वाचाल! मुकेश के गीत सुनने से नाटकीय और आधुनिक गायकों के गीत सुनकर व्यक्ति मन ही मन प्रोफेशनल एटीटयूड का आदमी बन सकता है। वह किसी से जुड़ नहीं सकता, भावनात्मक तौर पर। वह यूज एंड थ्रो का अनुयायी हो जाएगा, लेकिन इसी पेशेवर बंदे को अगर गंभीर, संजीदा संगीत सुनाया जाए तो उसकी दुनियादारी दफन हो सकती है। उसमें मानवीय गुण उभर कर सकते हैं, पैदा नहीं होंगे क्योंकि वे जन्म से बीज के रूप में पड़े होते हैं मन में।  

इसी क्रम में अगर हम पाश्चात्य संगीत की बात करें तो इसे व्यक्तित्व विकास के औजार की संज्ञा दी जा सकती है। माइकल जैक्सन के किंगनुमा गीतों को सुन कर व्यक्ति स्वयं किंग हुए बिना नहीं रह सकता। किंग से तात्पर्य तानाशाह या प्रशासक से नहीं बल्कि अपने आप में स्थिर, स्वभाव में जीने वाला वह व्यक्ति जो आत्म आनंद से भरा है, जिसे परिस्थितियां संचालित नहीं करतीं, वरन वह परिस्थितियों को अपने अनुसार ढालता है। जैक्सन के गीत लगातार सुनने से व्यक्ति बेहद सरल, सहज, स्पष्ट और सलीकेदार बन जाता है। एट सेम टाइम ही इज बाउंड टू बीहेव लाइक किंग। किंगडम यानी आत्मगौरव, आत्म सम्मान। जैक्सन को सुनकर एक प्रकार की बादशाहत उभरती है, जिसका "पर" से कोई संबंध नहीं, वह "स्व" पर केंद्रित हो जाता है। हालात उसे फिर नहीं डिगाते। उसे स्थितप्रज्ञ कहा जा सकता है। यही बात आकर बीटल्स पर लागू होती है। बीटल्स को सुनने वाला व्यक्ति कभी किसी की चापलूसी नहीं कर सकता। व्यर्थ यशोगान नहीं कर सकता। कभी क्षुद्र निंदा नहीं कर सकता, हां उच्च स्तर की आलोचना अवश्य कर सकता है। वह किसी को प्रभावित करने की मूर्ख चेष्टाओं में नहीं रहता, ना ही किसी से प्रभावित होता है। हर क्षण को मधुर कैसे बनाया जा सकता है, यह गुण उसमें पैदा हो जाता है।  


जॉन लेनन को सुनने वाला हाजिर जवाब, मुंहफट और बिंदास हो सकता है लेकिन उच्छृखंल नहीं। वह तार्किक होता जाएगा। और अधिक, और अधिक। जॉन लेनन के गीत क्रांति का ककहरा हैं। इसी प्रकार मकार्टनी, हैरिसन रिंगो हमें क्रमश: रोमांस, मासूमियत और कौशल की सौगात दे सकते हैं। जार्ज माइकल को सुनते रहिये और अपने व्यक्तित्व के छिलके प्याज की तरह उतरते देखिये। कभी बिंदास तो कभी अल्हड़, कभी संजीदा तो कभी बेहद कलात्मक। जार्ज माइकल वर्सेटाइलनेस का कंपलीट पैकेज हैं। लकी अली को सुनते सुनते अगर व्यक्ति अचानक इस दुनिया से कहीं अज्ञात में खो जाए तो आश्चर्य कीजियेगा और सिल्क रूट को सुनते हुए किसी को बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाए तो गम कीजियेगा। ये लोग संगीत की धारा में रहस्यवाद की नई शुरुआत हैं। अलौकिक अनुभूतियों से उष्ण और बौद्धिक गिरहों से परे।

लोकगीतों में जो जीवन बसता है, वह मासूम, निष्कपट और निष्ठावान होता है। हमारे लोकगायक कभी कुटिल, कभी स्मार्ट नहीं हो पाए तो उसका कारण यही है। प्रहलाद टिपानिया के कबीर भजन सुन कर आप स्वयं को भक्तिकाल में पा सकते हैं और फिरंगी प्रेम जोशुआ का फयूजन संगीत सुनकर आप स्वयं को बादलों की सेज पर बैठकर स्वरों के स्वर्ग में जाते देख सकते हैं। संध्या संजना के आलाप किसी गहरे, अंतहीन कुंए में धकेलते हैं तो बॉब डिलन के बैलेड्स हमें वहां से बाहर निकालकर किसी कक्ष में स्थापित कर देंगे, घंटों के लिये! यह सब क्या है? ये अमूर्त प्रेरणाएं हैं। ये नाद हैं। यही ब्रम्हस्वरूप है।  

मैंने संगीत में एक छुपा हुआ संसार जाना है। अलगअलग प्रकार के संगीत सुनकर व्यक्ति स्वत: ही बहुआयामी और मल्टी टास्किंग, मल्टी टैलेंटेड कब बन जाता है, पता ही नहीं चलता। आरोह और अवरोह की डोर पकड़े कुछ तरंगें जब वैविध्यवान हो कर घनीभूत हो जाती हैं तो परिदृश्य तो बिरला बनता ही है, उसे ग्रहण करने वाला भी विलक्षण हो जाता है। समाज में अपना लोक हम स्वयं चुनते हैं, लेकिन सुरों के संसार में हम कर्ता नहीं, निमित्त बन जाते हैं। संगीत को हम नहीं चुनते, संगीत ही हमें चुनता है। एक ही व्यक्ति में ढेर सारी शख्सियतें निकल सकती हैं बशर्ते हम यह घटित होने दें। जिस व्यक्ति ने यह साध लिया, वह भीड़ में भी खो नहीं सकता, वह भीड़ में भी तन्हा नहीं हो सकता और एकांत में भी सिकुड़ नहीं सकता। एक दुनिया उसके साथ हर पल धड़कती रहती है। मजमा भी मजलिस बन सकता है और एकांत यशोगान बन सकता है!

ई-मेल पता : navodit_db@yahoo.com 
मोबाइल नंबर : 09981960734
इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है  

टिप्पणियाँ

  1. नवोदित को विश्व संगीत की अद्भुत जानकारी है और उसके संगीत प्रेम की कथा किसी प्रेम कथा से कम नहीं है. जीवन को कलात्मक ढंग से कैसे जिया जाये इसकी समझ हमें बेहतरीन संगीत से आती है. तलत महमूद के बारे में मेरे विचार उनसे भिन्न हैं. तलत को सुनने वाला अत्यधिक संवेदनशील होता है.' आज के दौर में 'मैं' दिल हूँ एक अरमानभरा, तू आके मुझे पहचानवाले जरा ' सुनने वाले कहाँ हैं? आभासी दुनिया की उठापटक से दूर पसंदीदा संगीत हमें मन की गहराइयों में ले जाता है और हम अपनी खोयी हुई पहचान को तलाश करने की कोशिश करते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  2. मानसिकता को पकड़ता हुआ अच्छा आलेख है भाई .... बधाई !!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'