दीप्ति शर्मा की प्रेम कविताएँ


प्रेम मनुष्यता की सबसे पवित्रतम अनुभूति है. दुनिया की कोई भी स्त्री इस प्रेम को अपने तरह से जीती है. इसीलिए स्त्रियों के  प्रेम में वह निश्छलता और पवित्रता होती है जो अन्यत्र नदारद होती है.  दीप्ति ने इसी प्रेम में डूब कर लिखी हैं ये प्रेम कविताएँ। दीप्ति शर्मा की कविताओं में उत्तरोत्तर विकास स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. आइए पढ़ते हैं दीप्ति की नयी प्रेम कविताएँ।  

 
1.
बादलों का अट्टहास
वहाँ दूर आसमान में
और मूसलाधार बारिश
उस पर तुम्हारा मुझसे मिलना
मन को पुलकित कर रहा है
मैं तुम्हारी दी
लाल बनारसी साड़ी में
प्रेम पहन रही हूँ
कोमल, मखमली
तुम्हारी गूँजती आवाज
सा प्रेम
बाँधा है पैरों में
जिसकी आवाज़
तुम्हारी आवाज सी मधुर है
मैं चल रही हूँ प्रेम में
तुमसे मिलने को
अब ये बारिश भी
मुझे रोक ना पाएगी  


2.
मैं जी रही हूँ प्रेम
अँगुली के पोरों में रंग भर
दीवार पर चित्रों को उकेरती
तुम्हारी छवि बनाती
मैं रच रही हूँ प्रेम
रंगों को घोलती
गुलाबी, लाल,पीला
हर कैनवास को रंगती
तुम्हारी रंगत से
मैं रंग रही हूँ प्रेम
तुम्हारे लिये
हर दीवार पर
जिस पर तुम
सिर टिका कर बैठोगे  

3.
जब मैं प्रेम लिखूंगी
अपने हाथों से,
सुई में धागा पिरो
कपड़े का एक एक रेशा सिऊगी
तुम्हारे लिये
मजबूती से कपड़े का
एक एक रेशा जोडूंगी
और जब उसे पहनने को बढ़ेगे
तुम्हारे हाथ
तब उस पल
उस अहसास से
मेरा प्रेम अमर हो जायेगा.. 

सम्पर्क 
दीप्ति शर्मा
आगरा विश्वविद्यालय
Blog- www.deepti09sharma.blogspot.com


E-mail  : deepti09sharma@gamil.com


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