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प्रमोद धिताल की कविताएँ

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प्रमोद धिताल आज हमारी भौतिक जरूरतें इस कदर बढ़ गयी हैं कि हम मानवता की आधारभूत संकल्पनाएँ तक भुलाते जा रहे हैं । ऐसे समय में नेपाल के कवि प्रमोद धिताल एक चेतस कवि हैं जो अपनी कविताओं में इसकी खुली अभिव्यक्ति करते हैं । इसी को व्यक्त करते हुए प्रमोद कहते हैं - 'अब तो दोस्ती का अर्थ यहाँ धोखा है/ रिश्ते का अर्थ है स्वार्थ/ इस समय मै नही बनूँगा पागल/ बिल्कुल एक सचेत आदमी का जिऊँगा जीवन।' पहली बार पर प्रस्तुत है प्रमोद की ऐसी ही भावभूमि वाली कुछ नयी कविताएँ । प्रमोद धिताल की कविताएँ  1. एक सचेत आदमी की आत्मस्वीकृति जब तक था पागल मैं कुछ ब ची थी संवेदना कुछ थी मा सू मियत बेचैन होता था कुछ सवा लों पर बह जा ते थे आँ सू कुछ दुर्घटना ओं पर समाज के कुछ मुद्दे   अपने मुद्दे बन जाते थे आम लोगों के दुःख का हिस्सा अपना हिस्सा बन जाता था जब तक बचा हुआ था कुछ पागलपन तब तक कुछ चीजें भी बचे हुई थीं मेरे अन्दर। अब सचेत हो गया हूँ मैं रिश्ते के नाम पर धोखा दोस्ती के नाम पर इस्तेमाल अगर ये दो बा तें नहीं हैं आप

अष्टभुजा शुक्ल की कविता 'चैत के बादल' पर आशीष मिश्र की एक टिप्पणी

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अष्टभुजा शुक्ल आसमान में उमड़ने घुमड़ने वाले बादल बचपन से ही हमारे मन में अनेकानेक कल्पनाओं को जन्म देते हैं। आकाश में अनेक रुपाकृतियाँ निर्मित करते ये बादल जैसे हमारे सामने एक विविध वर्णी रंग-मंच ही खड़ा कर देते हैं। यही बादल किसानों के मन को कभी हुलसित कर देते हैं तो कभी घोर चिन्ता-फ़िक्र में डाल देते हैं। जीवन से इतने गहरे रूप से जुड़े ये बादल साहित्य खासकर कविताओं में भी अपनी समृद्ध उपस्थिति दर्ज कराते आए हैं। कालिदास के 'मेघदूत' को भला कौन भूल सकता है । इसी क्रम में हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि अष्टभुजा शुक्ल के ‘चैत के बादल’ कविता की याद आती है। हम इस को कविता को मूल रूप में प्रस्तुत करते हुए इस पर लिखी एक सारगर्भित टिप्पणी भी दे रहे हैं जिसे पहली बार के लिए लिखा है युवा आलोचक आशीष मिश्र ने। अष्टभुजा शुक्ल की यह कविता भी हमें आशीष के सौजन्य से ही प्राप्त हुई है ।         चैत के बादल अष्टभुजा शुक्ल   मुँह अन्हारे सन्न मारे गाँव में माया पसारे कहाँ से उपरा गये भड़ुए , अघी ये चैत के बादल! बालियों से झुकी-झपकी-पकी धरती सम्पदा का गेहूँआ