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अनिल जनविजय द्वारा फेसबुक पर संकलित कुछ अनमोल चित्र

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चित्र वीथिका   अनिल जनविजय  अनिल जनविजय ने पिछले दिनों अपने फेसबुक वाल पर चित्रों को पहचानने की एक पहेली शुरू की थी . इस पहेली को बूझने में कई मित्रों ने बड़ी दिलचस्पी  दिखाई । वाकई इसमें कई ऐसे भी चित्र थे जो हम सबके लिए धरोहर की तरह हैं । हमें अपने संस्कृति और साहित्य से जुडी विभूतियों को तो पहचानना ही चाहिए । इसी क्रम में हमने अनिल जनविजय की वाल से कुछ चित्रों को साभार ले कर यहाँ पर प्रस्तुत किया है । आइए कुछ नामचीन शख्सियतों को उनकी तस्वीरों के आईने से देखते हैं ।       (चिंतक, प्रयोगशील लेखक, निर्मल वर्मा ...यह चित्र प्रिय राम (भाई रामकुमार वर्मा को लिखे और उनकी पत्नी गगन गिल के संपादन में छपे ) पत्र संकलन का मुखपृष्ठ है ।) 'प्रथम प्रतिश्रुति' (1964), 'सुवर्णलता' (1966) और 'बकुल कथा' ( 1974) की प्रख्यात बांग्ला लेखिका आशापूर्णा देवी । जो हिन्दी में भी समादृत हैं ।   (राहुल जी और शिवपूजन बाबू,  अन्य :अनूपलाल मंडल़, छविनाथ पांडेय, देवेंद्रनाथ शर्मा १९५४। चित्र : बी एस एम मूर्ति ।)  ( रागदरबारी के लेखक श्री लाल शुक्

रुचि भल्ला की कविताएँ

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रूचि भल्ला नाम :रुचि भल्ला जन्म : 25 फरवरी 1972 शिक्षा : बी. ए.,   बी. एड. प्रकाशन: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में   कविताएँ प्रकाशित काव्य संग्रह : 'कविताएँ फेसबुक से ', 'काव्यशाला , सारांश समय का , क्योंकि हम ज़िन्दा हैं ,  कविता अनवरत ब्लॉग : गाथांतर , अटूट बंधन प्रसारण : आकाशवाणी के इलाहाबाद तथा पुणे केन्द्रों से कविताओं का प्रसारण. कुछ वर्षों तक अध्यापन भी किया आधुनिकता की आपाधापी कुछ ऐसी है कि हम अपना सारा अतीत भूलते जा रहे हैं. शहर एक संक्रामक बीमारी की तरह फैलते जा रहे हैं जबकि गाँव दिन-ब-दिन सिकुड़ते जा रहे हैं. ऐसा नहीं कि शहर जा कर व्यक्ति की सारी समस्याओं का निदान हो जाता हो. वहाँ भी बेहिसाब समस्याएँ हैं. आज दुनिया में जो भी प्रदूषण है, उसमें शहरों की एक बड़ी भूमिका है. हमने औद्योगीकरण का गुण तो सीखा लेकिन अपनी पृथिवी अपने वातावरण को साफ़-सुथरा बनाने की तहजीब सीखी ही नहीं. ऐसे में सहज ही एक कवि का ध्यान ऐसे तथ्यों की तरफ जाता है जो इस दुनिया को मलीन किए हुए है. आधुनिकता की बेहिसाब चीख-चिल्लाहटों और शोर-शराबों के बीच कव