संदेश

अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गौरव पाण्डेय की कविताएँ

चित्र
गौरव पाण्डेय मानव जीवन में रिश्तों का बहुत महत्व है. रिश्तों के अहसास की वजह से ही आदिमता को छोड़ कर हम मनुष्य बने. सभ्यता की राह में यह मनुष्य का एक बड़ा कदम था. निश्चित रूप से भाई-बहन का रिश्ता उन कुछ रिश्तों में प्रबल और प्रगाढ़ रिश्ता है जो आजीवन और अटूट बना रहता है. यह दो परिवारों को एकजुट करता है और मेल-मिलाप की परम्परा को साकार करता है. अपने यहाँ तो हम इस रिश्ते  को एक पर्व के रूप 'रक्षाबंधन' के रूप में अरसा पहले से ही मनाते आये हैं. बहनें जिनमें अपनत्व का एक समूचा अक्स उभरता है. युवा कवि गौरव पाण्डेय ने बहन पर कुछ कविताएँ लिखी हैं जिन्हें हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.  तो आइए पढ़ते हैं गौरव पाण्डेय की कविताएँ . गौरव पाण्डेय की कविताएँ       बहन पर कुछ कविताएं.. १ - माँ ..* हम शिखरों से पुकारते हैं .      . .... माँ.......... घाटियाँ गूंजती रहती हैं माँ ........ .माँ ...... ..माँ..... घाटियों में बहनें रहती हैं! २ - बहन _ पिता _ और _ मोबाईलगेम बहन और पिता मोबाइल मेँ गेम खेलते हैं दोपहर भर अपनी-अपनी बारी का इन्तजार करत

विजेंद्र की कविता पर हुई एक गोष्ठी की रपट

चित्र
हाल ही में "कवि  विजेंद्र की  कविता और  आज  के समय में  कविता की जरुरत " विषय  पर  लखनऊ  में  एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की एक रपट हमें भेजी है अशोक चन्द्र ने। प्रस्तुति आशीष सिंह की है। तो आइए पढ़ते हैं इस गोष्ठी  की यह रपट" विजेन्द्र  की  सतत  अग्रगामी काव्य यात्रा अशोक  चन्द्र लखनऊ।  23  अगस्त 2015.। "बातचीत'"  के  तत्वाधान  में  आयोजित  विचार  गोष्ठी   में  कवि  अशोक  श्रीवास्तव ने वरिष्ठ  जनकवि विजेन्द्र  की  कविता व जीवन  के बहुआयामी पहलुओं पर विस्तार से रोशनी  डालते  हुए कहा कि  "विजेन्द्र  की रचना  यात्रा  सतत  अग्रगामी  है। उनमें पुनरावृत्ति नहीं  होती '।  मालूम   हो  कि अशोक  जी  विजेन्द्र  के  कविताओं  को केन्द्र में  रख कर  "आज  का  समय  और  कविता की  जरुरत"  विषय  पर  बीज वक्तव्य रख  रहे  थे। कार्यक्रम  की शुरूआत विजेन्द्र  के सक्रिय अस्सीवें  जन्म-दिवस  पर  सबने  अपने प्रिय कवि  को  प्रफुल्लित  हृदय  से  बधाइयाँ  दी। और  साथ  ही  कवि संपादक  एकांत  श्रीवास्तव द्वारा "वागर्थ" पत्रि

संदीप मील की कहानी 'बाकी मसले'

चित्र
संदीप मील जिस राजनीति का काम जनता की सेवा करना था वह राजनीति जनता को मूर्ख बना कर अपना स्वार्थ साधने का काम करने लगी । जनता का ध्यान बंटाने के लिए ही हमारे राजनीतिज्ञ सीमा पार के खतरे की बात प्रायः ही किया करते हैं । सीमा पर हम दोनों मुल्कों के सैकड़ों सैनिक प्रति वर्ष केवल ठण्ड और प्रतिकूल मौसम की वजह से मर जाते हैं । हकीकत तो यही है कि युद्ध का वितंडा हमारे इन राजनीतिज्ञों ने ही खड़ा कर रखा है । दोनों देशों की जनता और सैनिक वस्तुतः शांति चाहते हैं लेकिन राजनीति की वजह से वे युद्ध के भय और माहौल में जीने के लिए जैसे अभिशप्त हैं । पाकिस्तान विरोध की घुट्टी हमें शुरू से ही पिलाई जाने लगती है । ठीक वैसे ही जैसे भारत के खिलाफ पाकिस्तानी मानस में शुरू से ही नफरत का जहर भरने का काम किया जाता है । कहानीकार संदीप मिल ने अपनी कहानी 'बाकी मसले' के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया है कि सीमा पर तैनात सैनिकों के अन्दर भी संवेदनाएँ हैं और मूलतः वे भी शान्ति के ही समर्थक हैं । कहानी की अन्तिम पंक्तियाँ तो जैसे एकबारगी सब कुछ स्पष्ट कर देती हैं जब हवलदार मान सिंह दहाड़ते  हुए रणजीत