रेणु मिश्रा की कविताएँ

रेणु मिश्रा 
नाम- रेणु मिश्रा
जन्मतिथि- 18 दिसंबर, 1979
जन्मस्थली- वाराणसी, उत्तर-प्रदेश
कर्मस्थली- अनपरा, सोनभद्र, उ.प्र

शिक्षा - परास्नातक (दर्शनशास्त्र), बीएचयू, वाराणसी, परास्नातक (जन-संपर्क व् पत्रकारिता) एसएमयू, मणिपाल
लेखन विधा- कहानी, कविता, ब्लॉग लेखन
कृतियाँ – विरहगीतिका, धूप के रंग' साझा काव्य संग्रह। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं व दैनिक समाचारपत्रों (दैनिक जागरण, बिंदिया, कादंबिनी, आउटलुक, कथाक्रम इत्यादि) में समय समय पर कवितायें व कहानियां प्रकाशित। 

तमाम आधुनिकताओं के बावजूद आज स्त्री हर जगह अपने को प्रताड़ित पाती है। घर से निकलने पर पुरुषों की भेदती नजरें उसे ख़ुद ही अहसास करा देती है कि उन नजरों की दृष्टि क्या है? उसे लगता है कि वह इस तरह की नजरों से देखे जाने के लिए जन्म-जन्मान्तर तक के लिए अभिशप्त है  रेणु मिश्रा प्रेक्टिकल सोच की कवयित्री हैं। उनके पास अनुभव है उस स्त्री का, जो कवि भी है और उसे शब्दों में उकेरने का साहस भी है। वे अपनी आस-पास की दुनिया और चीजों से भरपूर प्यार करते हुए कहती भी हैं कि 'मुझे प्यार है'। वह प्यार जो अब दुर्लभ हो चला है। वह प्यार जिसमें दिखावट के छींटे ही अब अधिक दिखाई पड़ते हैं। तो आइए पढ़ते हैं रेणु मिश्रा की कुछ नयी कविताएँ         


प्रैक्टिकल सोच की दुनिया

कल तक जली हुई लाश को ले कर
चक्का-जाम लगाने वाले
भूखे पेट अनशन-धरना पर बैठ
सत्ता से न्याय की गुहार लगाने वाले 
खबरनवीस के बाप-भाई, 
और नाते-रिश्तेदारों के रूखे तेवर 
तब से पड़ गए हैं ज़रा मुलायम
जब से दिखने लगे हैं मुआवज़े के आसार
अब वो भी सच का घोटते हैं गला
जघन्य कुकृत्य पर डालते हैं पर्दा
नेता जी से सहानुभूति मिलने के बाद से
वो दबाते हैं जज़्बातों को कफ़न में
और सोचते हैं थोड़ा हो कर व्यवहारिक
उन्हें याद हो आता है गीता-सार
कि आत्मा, तो ना मरती है ना कटती है
और ना जला सकती है उसे अग्नि
जो जलता है, कटता है, मरता है
वो तो नश्वर है शरीर
उस नष्ट हो गये देह के लिए 
कब तक बेचैन हो के लड़ेंगे लड़ाई
जो नष्ट हो गया उसके लिए 
अपना भविष्य फूंकने में कहाँ की भलाई
ज़रा प्रैक्टिकल हो कर सोचना ही तो
आज के दुनिया की है डिमांड 
इसलिए सबने सोचा बहुत प्रैक्टिकल हो कर 
कि अब इमोशनल फूल बनने से क्या होगा
ना पायेंगे न्याय, ना खुलेगा झूठ का चिट्ठा
आखिर इस झूठ की दुनिया में 
सच बयानी से मिला ही क्या है
इसलिए बेटे, पिता के इन्साफ के बदले
चुनते हैं सरकारी नौकरी 
पत्रकार का बूढा बाप, उज्जवल भविष्य के लिए
स्वीकारता है ज़िंदा जला मुआवज़ा !!


 मुझे प्यार है

लोग कहते हैं
पल पल ख़तम हो रही, इस दुनिया के लिए
क्यों दुखी होना
पल में छू हो जाने वाले जीवन में
निर्जीव चीज़ों के लिए क्या मोह करना
क्या उनके प्यार में पड़ना
लेकिन कैसे बताऊँ
कुछ चीज़ों से अपने आप ही प्यार हो जाता है
और कुछ बनी ही होती हैं प्यार के लिए
जैसे....
मुझे प्यार है 
अपने उस रेनॉल्ड्स पेन के
दबे कूचे ढक्कन से
जो मेरे कुछ सोचते हुए चबाये जाने पर भी
उफ़्फ़ तक नही करता
ख़लल नहीं डालता 
विचारों की आवाजाही पर
रेज़ा रेज़ा हो जाने पर भी
नहीं देता दरख्वास्त 
सिक लीव पर जाने का 
दबाये-कुचलाये जाने पर भी 
नहीं लिखवाता एफआईआर
मुझे प्यार है
अपने उस कड़छी कड़ाही
चाय के पैन और प्यालियों से
जो मेरे हाथों में कब आ रुके
मुझे तो अब ठीक से याद भी नहीं
दोस्ती-यारी, रिश्ते-नातों को बचाये रखने में
मेरी ही तरह खदकते रहे, उबलते रहे
दुनियादारी के स्टोव पर
लेकिन हर बार हर मौके पर
घोलते रहते हैं अपनेपन की मिठास
कायम रखते हैं रिश्तों में कुरकुरापन
मुझे प्यार है 
अपने गर्दन के पीछे गुदाये
तुम्हारे नाम के गुमनाम टैटू से
जिसे छिपा लेती हूँ स्याह अँधेरी लटो से
ठीक वैसे ही जैसे चोर छिपाता है
लूट के लाया अनमोल हीरों का हार
उसकी तड़पन, चुभन में लिपटा
मेरा मासूम प्यार
अब भी मेरे मन में वैसे ही गुदा है
ज्यों बारिश की हलकी बूंदों में
टहलता मचलता तुम्हारा ख्याल
मुझे प्यार है
अपने उस एक जोड़ी यायावर जूतों से
जिसके पावों में रहने से
बदल जाता है मन का भूगोल
किताबों में आड़ी-तिरछी रेखाओं में उकेरी
झीलें ताल तलैया, प्रेम की इमारतें, 
स्तूप पर उभरी शांति की इबारतें
बुद्ध के ज्ञान की गुफाएं
लहरों में बहती कितनी ही सभ्यताएं 
प्रत्यक्ष उभर आती हैं
आँखों के मानचित्र पर
और कदम निकल पड़ते हैं तलाशने 
उनमे अपना जीवन....





अपना ये शहर 

अपने इस शहर में
उम्र का एक पड़ाव 
पार कर लेने के बाद भी
मुझमे मेरा बहुत कुछ बीत जाने 
और बहुत कुछ बदल जाने पर भी
बहुत कुछ बाकी रह गया है
बिना बीते, बेबदले, अनछुआ-सा
जस का तस
बिना बदले, बाकी रह गयी है
माँ की तरह अलसुबह जाग जाने वाली
अंगीठी में सुलगती कोयले की गंध
जो ज़िंदा रखती है मुझमें
टहलते वक़्त रुक के चाय पीने की तलब
मद्धम आंच पर उबल कर
छन्न से कांच के गिलास में गिरी चाय को
फूँक-फूँक कर जल्दी से पी जाने का रोमांच
आज भी नहीं बदला
ख़ुशी होती है
कि नहीं बदला है भोलापन
और बची रह गयी है नादानी
उन आधी नींद से उठ कर
स्कूल जाते अधसोये परिंदों की
आज भी उनके चहचहाने से
रात का दुःख-भरा मुखौटा उतार
दिन उजला-सा मुस्कुरा उठता है
चौराहे के पास वाला 
धूल छौंकता रेस्तरां, पान की दुकान
हेयर सैलून का अमिताभ बच्चन वाला बोर्ड
और बस के इंतज़ार में
बिना बस-स्टैंड के भी कतार में खड़े सीधे लोग
वैसे ही बेबदले से हैं
जैसे चार दिशाओं में जाते हुए चौराहे से
मेरे घर की ओर आती हुई सीधी सड़क
साथ ही नहीं बदला शाम-सहर पांच पहर
मस्जिद से उठने वाली अजानों की गूँज
और ना ही बदली आरती के वक़्त बजने वाली
मंदिर के घंटों, ढोल, नगाड़ों की धुन
मन में हुलसते प्रेम का गीत गुनगुनाने
आज भी घिर आती है बदरी
और नाचते गाते झमाझम बरस उठते हैं मेघ
इस हर क्षण बदलते जीवन में 
बहुत कुछ अच्छा-बुरा बदल जाने पर भी
जो नहीं बदला वो है
अपनी ही धुन में थिरकता 
अपनी सौंधी गंध से सराबोर
अपना ये शहर।

जब मैं लिखती हूँ कहानी


मैं जब लिखती हूँ कहानी
पहुँचा नहीं पाती 
उस मँगनी हुई लड़की को
उसके प्रेमी के पास
अब जो मांग ली गयी है ख़ैरात में
उसे कैसे माँग लाऊँ वापस
उस लड़की को
उसके मंगेतर से इतर
माँग चुके हैं समाज के रिंग-मास्टर
और घुमाते हैं उसे
रस्मों-कसमों
रिश्ते-नातों
नियम-कायदों के मायाजाल में
ठीक वैसे ही जैसे
रिंग-फिंगर के गर्दन में लटकी हो
अँगूठी नाम की रस्सी
जो रोज़ धीरे-धीरे कसते कसते
उसकी साँस लेने को आमादा हो।
वो झुंझलाती है
कसमसाती है
चाहती है बहुत कुछ कहना
वो निकल के 
विकट मायाजाल से
चाहती है भागते हुए हाँफना
दोनों बाहों से 
जकड़ के अपने प्रेमी को
चाहती है ज़ार-ज़ार रोना
लेकिन जब मैं लिखती हूँ कहानी
नहीं जुटा पाती हिम्मत
नहीं बदल पाती
कलपती प्रेम-कहानियों का इतिहास
नहीं पहुँचा पाती
उस मँगनी हुई लड़की को
उसके प्रेमी के पास!!
 


थोड़ी दूरी है ज़रूरी

बात आस पड़ोस की हो
या घने सगे-सम्बन्धियों की
रिश्तों को बनाये रखने के लिए
आपस में 'थोड़ी दूरी है ज़रूरी'
इससे बची रहेगी जगह 
आपस में खुल के सांस लेने की
बची रहेगी थोड़ी गुंजाइश 
सम्बन्धों में तपिश सहने की
क्योंकि ये जो इंस्टेंट मेसेजिंग के ज़रिये 
शुरू हुई है प्राइवेसी में सेंधमारी
और संक्रमण के जैसे फैलती जा रही है 
पल पल की खबर रखने की बीमारी
उससे लुटी जा रही चाहने की ललक
मिटा जा रहा है लगाव
पल पल एक-दूजे के करीब रह के भी
रिश्तों में तैरती जा रही है
ख़ामोशी-भरी बरसों की दूरी
याद हो आते हैं हमारे अपने पुरखे
जो बीज गोड़ते समय खेतों में 
रखते थे आपस की दूरी का खयाल
मगर रिश्तों की खेती करने की 
अब फुरसत किसको
मन की धरती हो चली है बंजर 
अब तो खेतों में भी उगते हैं 
केवल ईंट और पाथर
पहले बंधे रहते थे दो मन
नदिया के दो किनारों की तरह
वो बहा लाती चिट्ठी के जहाजों में
आँसू-मुस्कान भरे खनिज-लवण
लहलहाती थी जिनसे जीवन में
ममता औ' दुलार की फसलें
भावनाओं की मजबूत ज़मीन पर 
खड़ी हो उठती थी बरगद-सी
रिश्तों को निभाने वाली विशाल परम्पराएँ 
मीलों या बरसों की दूरियों के बावजूद
टूटता नहीं था मन का जुड़ाव
दरकता नहीं था कोई भी सम्बन्ध!! 


घर की दहलीज़ के बाहर

घर के दहलीज़ के बाहर
कदम रखते ही 
पाती हूँ खुद को बिलकुल निर्वस्त्र
मिटाती हूँ नज़र नीची कर
अपने होने का वजूद
शरीर को कई तह के कवचों से 
छुपा लेने के बावजूद
घूरती है हर एक नज़र
नख से शिख तक
और कुछ नज़रों का तो होता है
राडार ही ख़राब
ऐसे जा टिकतीं हैं उरोजों पर
जैसे दिखते ही भेद देना चाहेंगी
दुश्मन के बंकर
लपलपाती आखों से ही 
कर डालना चाहती हैं बलात्कार
सही तो है अपने देश में
जघन्य अपराधों की सजा भी कहाँ होती है
बस कोर्ट से मिलती हैं तारीखें 
और चाल-चलन पर होते हैं तर्क-कुतर्क
इसलिए चाहती हूँ
फट जाए फिर एक बार धरती की छाती 
और समा जाए स्त्रियों की हर एक खेप
फूल-पत्तियां, तितलियाँ, गेहूं की बालियां, नदियाँ,
घर-घर स्थापित लक्ष्मी-रूपी देवियाँ
और पुरुषों की हर प्रजाति 
भटके इस पृथ्वी उसी तरह
जिस तरह भटक रहा होगा अश्वत्थामा
खो जाने पर उसकी अमूल्य मणि!! 
 
सम्पर्क-
पता - टाइप IV-203, एटीपी कॉलोनी,  
अनपरा, सोनभद्र -231225


मोबाइल न. - 9598604369

ईमेल - remi.mishra@gmail.com

ब्लॉग का पता - लम्हों के मुसाफिर 
renu-mishra.blogspot.com


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि एवं चित्रकार अजामिल के हैं.)

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-08-2015) को "समस्याओं के चक्रव्यूह में देश" (चर्चा अंक-2076) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. रेनू जी दिल को छू गई आपकी कवितायेँ.

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    उत्तर
    1. आपका बहुत शुक्रिया रचना जी कविताओं पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए।

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  3. मौलिक भावनाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति ... बधाई एवं शुभकामनायें ।

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    उत्तर
    1. आपके अमूल्य टिप्पणी के लिए धन्यवाद अरविन्द जी ।

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  4. रेणु जी की बहुत सुन्दर कविता प्रस्तुति हेतु आभार!

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    उत्तर
    1. आपके अमूल्य टिप्पणी के लिए धन्यवाद कविता जी ।

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  5. आज के देश समाज का आईना दिखाती बहुत असरदार कविताएं।रेणु जी को हार्दिक बधाई।

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  6. कमाल का रचनाकर्म यथार्थ को भावों में पिरोकर कैनवास पर उकेरती अभिव्यक्ति। सभी कवितायेँ कमाल की है मेरी पसंदीदा रचना है प्रैक्टिकल सोच की दुनिया और मुझे प्यार है। कमाल का सौंदर्य। नमन

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    1. विवेक जी आपकी प्रतिक्रिया ने और हौसला दिया। धन्यवाद।

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  7. कमाल का रचनाकर्म यथार्थ को भावों में पिरोकर कैनवास पर उकेरती अभिव्यक्ति। सभी कवितायेँ कमाल की है मेरी पसंदीदा रचना है प्रैक्टिकल सोच की दुनिया और मुझे प्यार है। कमाल का सौंदर्य। नमन

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  8. कमाल का रचनाकर्म यथार्थ को भावों में पिरोकर कैनवास पर उकेरती अभिव्यक्ति। सभी कवितायेँ कमाल की है मेरी पसंदीदा रचना है प्रैक्टिकल सोच की दुनिया और मुझे प्यार है। कमाल का सौंदर्य। नमन

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  9. कमाल का रचनाकर्म यथार्थ को भावों में पिरोकर कैनवास पर उकेरती अभिव्यक्ति। सभी कवितायेँ कमाल की है मेरी पसंदीदा रचना है प्रैक्टिकल सोच की दुनिया और मुझे प्यार है। कमाल का सौंदर्य। नमन

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  10. अपने कच्चेपन में आकर्षित करती हैं कवितायें। बहुत शुभकामनायें।

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    उत्तर
    1. अशोक जी आपने समय निकाल कर मेरी कविताओं को पढ़ा और प्रतिक्रिया भी दिया। बहुत धन्यवाद आपका।

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  11. Renu very nicely presented, short and crisp, but carry a lot of depth, touching and powerful enough to shake the soul. simply superb.

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  12. पहली और आखिरी कविता ज्वलंत प्रश्न उठाती है। बाकी कविताओं की विषयवस्तु और शैली बढ़िया है। सृजनात्मक सफ़र पर आगे बढ़ती रहें। शुभकामनाएं।

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    उत्तर
    1. बहुत सारा धन्यवाद तिथि जी आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए। आगे और अच्छा लिख सकूँ...इसके लिए ये मुझे प्रेरित अवश्य करेंगी :)

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