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सर्वेन्द्र विक्रम के कविता संग्रह ‘दुःख की बन्दिशें’ पर विशाल श्रीवास्तव की समीक्षा

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कवि सर्वेन्द्र विक्रम का हाल ही में एक महत्वपूर्ण कविता संग्रह ‘ दुःख की बन्दिशें ’ प्रकाशित हुआ है । इस संग्रह की एक समीक्षा लिखी है युवा कवि विशाल श्रीवास्तव ने । तो आइए पढ़ते हैं विशाल श्रीवास्तव की यह समीक्षा 'पीड़ा का मद्धिम बजता हुआ राग' ।   पीड़ा का मद्धिम बजता हुआ राग   विशाल श्रीवास्तव ‘‘ नदी में बहता हुआ एक टुकड़ा चुन लो और अपनी निगाह से धारा में बहते हुए उस टुकड़े का पीछा करते रहो , उस पर अपनी नज़रें लगातार जमाए हुए , बिना धारा से आगे निकले। कविता इसी तरह से पढ़ी जानी चाहिए: एक पंक्ति की रफ्तार से। ’’ (स्वर्ग वाचाल नहीं है: एक नोटबुक: वेरा पावलोवा) ‘ एक दिन दिल्ली में समय ’ के बाद ‘ दुःख की बन्दिशें ’ सर्वेन्द्र विक्रम का दूसरा कविता-संग्रह है। इसे पढ़ने से भी पहले जिस एक बात पर सबसे पहले ध्यान चला गया , वह यह कि सर्वेन्द्र विक्रम कम लिखने वाले कवियों में से हैं (और ऐसा लिख कर मैं कतई यह साबित नहीे करने जा रहा कि ज़्यादा लिखने वाले कवि खराब होते हैं , हाँ! यहाँ इस दो शब्द पहले के अर्द्धविराम के पहले एक और कोष्ठक और स्माइली भी चाहें तो पढ़ सकते हैं