अन्तोन चेखव की अनुदित कहानी दुःख। (अनुवादक : सुशांत सुप्रिय)

अन्तोन चेखव



मनुष्य इसलिए भी और जीवधारियों से अलग है क्योंकि वह अपना दुःख अपनी खुशी एक दूसरे के साथ बाँटना चाहता है। परिचित हो या अपरिचित दुःख बाँट कर वह खुद को हल्का महसूस करने लगता है। लेकिन कभी-कभी लोगों में इतना बेगानापन दिखाई पड़ता है कि वे दूसरों की बातें बिल्कुल ही सुनना नहीं चाहते। रूस के महान कथाकार अन्तोव चेखव मनुष्य की संवेदनाओं को उकेरने वाले अनूठे कथाकार हैं। उनकी एक कहानी का अनुवाद किया है कवि और अनुवादक सुशान्त सुप्रिय ने। तो आइए आज पढ़ते हैं चेखव की अनुदित कहानी दुःख।
      
(अनूदित रूसी कहानी)
                         
दुःख
                                 
मूल लेखक : अन्तोन चेखव

अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

 


"मैं अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँ?"

शाम के धुँधलके का समय है। सड़क के खम्भों की रोशनी के चारों ओर बर्फ़ की एक गीली और मोटी परत धीरे-धीरे फैलती जा रही है। बर्फ़बारी के कारण  कोचवान योना पोतापोव किसी सफ़ेद प्रेत-सा दिखने लगा है। आदमी की देह जितनी भी मुड़ कर एक हो सकती है, उतनी उसने कर रखी है। वह अपनी घोड़ागाड़ी पर चुपचाप बिना हिले-डुले बैठा हुआ है। बर्फ़ से ढँका हुआ उसका छोटा-सा घोड़ा भी अब पूरी तरह सफ़ेद दिख रहा है। वह भी बिना हिले-डुले खड़ा है। उसकी स्थिरता, दुबली-पतली काया और लकड़ी की तरह तनी सीधी टाँगें ऐसा आभास दिला रही हैं जैसे वह कोई सस्ता-सा मरियल घोड़ा हो।

योना और उसका छोटा-सा घोड़ा, दोनों ही बहुत देर से अपनी जगह से नहीं हिले हैं। वे खाने के समय से पहले ही अपने बाड़े से निकल आए थे, पर अभी तक उन्हें कोई सवारी नहीं मिली है।
"
ओ गाड़ी वाले, विबोर्ग चलोगे क्या? "योना अचानक सुनता है,
"
विबोर्ग!"

हड़बड़ाहट में वह अपनी जगह से उछल जाता है। अपनी आँखों पर जमा हो रही बर्फ़ के बीच से वह धूसर रंग के कोट में एक अफ़सर को देखता है, जिसके सिर पर उसकी टोपी चमक रही है।

"
विबोर्ग!" अफ़सर एक बार फिर कहता है। "अरे, सो रहे हो क्या? मुझे विबोर्ग जाना है।"

चलने की तैयारी में योना घोड़े की लगाम खींचता है। घोड़े की गर्दन और पीठ पर पड़ी बर्फ़ की परतें नीचे गिर जाती हैं। अफ़सर पीछे बैठ जाता है। कोचवान घोड़े को पुचकारते हुए उसे आगे बढ़ने का आदेश देता है। घोड़ा पहले अपनी गर्दन सीधी करता है, फिर लकड़ी की तरह सख़्त दिख रही अपनी टाँगों को मोड़ता है और अंत में अपनी अनिश्चयी शैली में आगे बढ़ना शुरू कर देता है। योना ज्यों ही घोड़ा-गाड़ी आगे बढ़ाता है, अँधेरे में आ-जा रही भीड़ में से उसे सुनाई देता है, "अबे, क्या कर रहा है, जानवर कहीं का! इसे कहाँ ले जा रहा है, मूर्ख! दाएँ मोड़!"

"
तुम्हें तो गाड़ी चलाना ही नहीं आता! दाहिनी ओर रहो!" पीछे बैठा अफ़सर ग़ुस्से से चीख़ता है।

फिर रुक कर, थोड़े संयत स्वर में वह कहता है, "कितने बदमाश हैं ... सब के सब!" और मज़ाक करने की कोशिश करते हुए वह आगे बोलता है, "लगता है, सबने क़सम खा ली है कि या तो तुम्हें धकेलना है या फिर तुम्हारे घोड़े के नीचे आ कर ही दम लेना है!"

कोचवान योना मुड़ कर अफ़सर की ओर देखता है। उसके होठ ज़रा-सा हिलते हैं। शायद वह कुछ कहना चाहता है।

"
क्या कहना चाहते हो तुम?" अफ़सर उससे पूछता है।

योना ज़बर्दस्ती अपने चेहरे पर एक मुस्कराहट ले आता है, और कोशिश करके फटी आवाज़ में कहता है, "मेरा इकलौता बेटा बारिन इस हफ़्ते गुज़र गया साहब!"

"
अच्छा! कैसे मर गया वह?"

योना अपनी सवारी की ओर पूरी तरह मुड़ कर बोलता है , " क्या कहूँ, साहब। डॉक्टर तो कह रहे थे, सिर्फ़ तेज़ बुखार था। बेचारा तीन दिन तक अस्पताल में पड़ा तड़पता रहा और फिर हमें छोड़ कर चला गया... भगवान की मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है!"

"
अरे, शैतान की औलाद, ठीक से मोड़!" अँधेरे में कोई चिल्लाया, "अबे ओ बुड्ढे, तेरी अक़्ल क्या घास चरने गई है? अपनी आँखों से काम क्यों नहीं लेता?"

"
ज़रा तेज चलाओ घोड़ा ... और तेज ..." अफ़सर चीख़ा, 'नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुँच पाएँगे! ज़रा और तेज!" कोचवान एक बार फिर अपनी गर्दन ठीक करता है, सीधा हो कर बैठता है और रुखाई से अपना चाबुक हिलाता है। बीच-बीच में वह कई बार पीछे मुड़ कर अपनी सवारी की तरफ़ देखता है, लेकिन उस अफ़सर ने अब अपनी आँखें बंद कर ली हैं। साफ़ लग रहा है कि वह इस समय कुछ भी सुनना नहीं चाहता।

अफ़सर को विबोर्ग पहुँचा कर योना शराबख़ाने के पास गाड़ी खड़ी कर देता है, और एक बार फिर उकड़ूँ हो कर सीट पर दुबक जाता है। दो घंटे बीत जाते हैं। तभी फुटपाथ पर पतले रबड़ के जूतों के घिसने की 'चूँ-चूँ, चीं-चीं' आवाज़ के साथ तीन लड़के झगड़ते हुए वहाँ आते हैं। उन किशोरों में से दो लंबे और दुबले-पतले हैं जबकि तीसरा थोड़ा कुबड़ा और नाटा है।

"
ओ गाड़ी वाले! पुलिस ब्रिज चलोगे क्या?" कुबड़ा लड़का कर्कश स्वर में पूछता है। "हम तुम्हें बीस कोपेक देंगे।"

 *      *      *      *      *      *       *       *      *      *      *      *     *      *    *

योना घोड़े की लगाम खींच कर उसे आवाज़ लगाता है, जो चलने का निर्देश है। हालाँकि इतनी दूरी के लिए बीस कोपेक ठीक भाड़ा नहीं है, पर एक रूबल हो या पाँच कोपेक हों, उसे अब कोई एतराज़ नहीं... उसके लिए अब सब एक ही है। तीनों किशोर सीट पर एक साथ बैठने के लिए आपस में काफ़ी गाली-गलौज और धक्कम-धक्का करते हैं। बहुत सारी बहस और बदमिज़ाजी के बाद अंत में वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि कुबड़े लड़के को खड़ा रहना चाहिए क्योंकि वही सबसे ठिगना है।

"
ठीक है, अब तेज़ चलाओ!" कुबड़ा लड़का नाक से बोलता है। वह अपनी जगह ले लेता है, जिससे उसकी साँस योना की गर्दन पर पड़ती है।

"
तुम्हारी ऐसी की तैसी! क्या सारे रास्ते तुम इसी ढेंचू रफ़्तार से चलोगे ? क्यों न तुम्हारी गर्दन ...!"

"
दर्द के मारे मेरा तो सिर फटा जा रहा है, "उनमें से एक लम्बा लड़का कहता है।" कल रात दोंकमासोव के यहाँ मैंने और वास्का ने कोंयाक की पूरी चार बोतलें चढ़ा लीं।"

"
मुझे समझ में नहीं आता कि आख़िर तुम इतना झूठ क्यों बोलते हो? तुम एक दुष्ट व्यक्ति की तरह झूठे हो!" दूसरा लम्बा लड़का ग़ुस्से में बोला।

"
भगवान क़सम! मैं सच कह रहा हूँ!"

"
हाँ, हाँ, क्यों नहीं! तुम्हारी बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी इसमें कि सुई की नोक में से ऊँट निकल सकता है!"

"
हें, हें, हें... आप सब कितने मज़ाक़िया हैं!" योना खीसें निपोर कर बोलता है।

"
अरे, भाड़ में जाओ तुम!" कुबड़ा क्रुद्ध हो जाता है।" बुढ़ऊ, तुम हमें कब तक पहुँचाओगे? चलाने का यह कौन-सा तरीका है? कभी चाबुक का इस्तेमाल भी कर लिया करो! ज़रा ज़ोर से चाबुक चलाओ, मियाँ! तुम आदमी हो या आदमी की दुम!"

योना यूँ तो लोगों को देख रहा है, पर धीरे-धीरे अकेलेपन का एक तीव्र एहसास उसे ग्रसता चला जा रहा है। कुबड़ा फिर से गालियाँ बकने लगा है। लम्बे लड़कों ने किसी लड़की नादेज़्दा पेत्रोवना के बारे में बात करनी शुरू कर दी है।

योना उनकी ओर कई बार देखता है। वह किसी क्षणिक चुप्पी की प्रतीक्षा के बाद मुड़कर बुदबुदाता है, "मेरा बेटा... इस हफ़्ते गुज़र गया।"

"
हम सबको एक दिन मरना है।" कुबड़े ने ठंडी साँस ली और खाँसी के एक दौरे के बाद होठ पोंछे।" अरे, ज़रा जल्दी चलाओ... खूब तेज! दोस्तो, मैं इस धीमी रफ़्तार पर चलने को तैयार नहीं। आख़िर इस तरह यह हम सबको कब तक पहुँचाएगा?"

"
अरे, अपने इस घोड़े की गर्दन थोड़ी गुदगुदाओ!"

"
सुन लिया ... बुड्ढे! ओ नर्क के कीड़े! मैं तुम्हारी गर्दन की हड्डियाँ तोड़ दूँगा! अगर तुम जैसों की ख़ुशामद करते रहे तो हमें पैदल चलना पड़ जाएगा! सुन रहे हो न बुढ़ऊ! सुअर की औलाद! तुम पर कुछ असर पड़ रहा है या नहीं?"

योना इन शाब्दिक प्रहारों को सुन तो रहा है, पर महसूस नहीं कर रहा।

वह 'हें, हें' करके हँसता है।" आप साहब लोग हैं। जवान हैं... भगवान आपका भला करे!"

"
बुढ़ऊ, क्या तुम शादी-शुदा हो?" उनमें से एक लंबा लड़का पूछता है।

"
मैं? आप साहब लोग बड़े मज़ाक़िया हैं! अब बस मेरी बीवी ही है... वह अपनी आँखों से सब कुछ देख चुकी है। आप समझ गए न मेरी बात। मौत बहुत दूर नहीं है... मेरा बेटा मर चुका है और मैं ज़िंदा हूँ... कैसी अजीब बात है यह। मौत ग़लत दरवाज़े पर पहुँच गयी... मेरे पास आने की बजाए वह मेरे बेटे के पास चली गयी..."

योना पीछे मुड़ कर बताना चाहता है कि उसका बेटा कैसे मर गया! पर उसी समय कुबड़ा एक लम्बी साँस खींच कर कहता है, "शुक्र है खुदा का! आख़िर मेरे साथियों को पहुँचा ही दिया!" और योना उन सबको अँधेरे फाटक के पार धीरे-धीरे ग़ायब होते देखता है। एक बार फिर वह खुद को बेहद अकेला महसूस करता है। सन्नाटे से घिरा हुआ... उसका दुख जो थोड़ी देर के लिए कम हो गया था, फिर लौट आता है, और इस बार वह और भी ताक़त से उसके हृदय को चीर देता है। बेहद बेचैन हो कर वह सड़क की भीड़ को देखता है, गोया ऐसा कोई आदमी तलाश कर रहा हो जो उसकी बात सुने। पर भीड़ उसकी मुसीबत की ओर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ जाती है। उसका दुख असीम है। यदि उसका हृदय फट जाए और उसका दुख बाहर निकल आए तो वह मानो सारी पृथ्वी को भर देगा। लेकिन फिर भी उसे कोई नहीं देखता। योना को टाट लादे एक क़ुली दिखता है। वह उससे बात करने की सोचता है।

"
वक़्त क्या हुआ है, भाई?" वह क़ुली से पूछता है।

"
नौ से ज़्यादा बज चुके हैं। तुम यहाँ किसका इंतज़ार कर रहे हो? अब कोई फ़ायदा नहीं, लौट जाओ।"

योना कुछ देर तक आगे बढ़ता रहता है, फिर उकड़ूँ हालत में अपने ग़म में डूब जाता है। वह समझ जाता है कि मदद के लिए लोगों की ओर देखना बेकार है। वह इस स्थिति को और नहीं सह पाता और 'अस्तबल' के बारे में सोचता है। उसका घोड़ा मानो सब कुछ समझ कर दुलकी चाल से चलने लगता है।

***            ***           ***           ***           ***            ***          ***      ***

लगभग डेढ़ घंटे बाद योना एक बहुत बड़े गंदे-से स्टोव के पास बैठा हुआ है। स्टोव के आस-पास ज़मीन और बेंचों पर बहुत से लोग खर्राटे ले रहे हैं। हवा दमघोंटू गर्मी से भारी है। योना सोये हुए लोगों की ओर देखते हुए खुद को खुजलाता है... उसे अफ़सोस होता है कि वह इतनी जल्दी क्यों चला आया।

आज तो मैं घोड़े के चारे के लिए भी नहीं कमा पाया -- वह सोचता है।

एक युवा कोचवान एक कोने में थोड़ा उठ कर बैठ जाता है और आधी नींद में बड़बड़ाता है। फिर वह पानी की बालटी की तरफ़ बढ़ता है।

"
क्या तुम्हें पानी चाहिए?" योना उससे पूछता है।
 
"यह भी कोई पूछने की बात है?"

"
अरे नहीं, दोस्त! तुम्हारी सेहत बनी रहे! लेकिन क्या तुम जानते हो कि मेरा बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा... तुमने सुना क्या? इसी हफ़्ते ... अस्पताल में ... बड़ी लम्बी कहानी है।"

योना अपने कहे का असर देखना चाहता है, पर वह कुछ नहीं देख पाता। उस युवक ने अपना चेहरा छिपा लिया है और दोबारा गहरी नींद में चला गया है। बूढ़ा एक लम्बी साँस ले कर अपना सिर खुजलाता है। उसके बेटे को मरे एक हफ़्ता हो गया लेकिन इस बारे में वह किसी से भी ठीक से बात नहीं कर पाया है। बहुत धीरे-धीरे और बड़े ध्यान से ही यह सब बताया जा सकता है कि कैसे उसका बेटा बीमार पड़ा, कैसे उसने दुख भोगा, मरने से पहले उसने क्या कहा और कैसे उसने दम तोड़ दिया। दफ़्न के वक़्त की एक-एक बात बतानी भी ज़रूरी है और यह भी कि उसने कैसे अस्पताल जा कर बेटे के कपड़े लिए। उस समय उसकी बेटी अनीसिया गाँव में ही थी। उसके बारे में भी बताना ज़रूरी है। उसके पास बताने के लिए इतना कुछ है। सुनने वाला ज़रूर एक लम्बी साँस लेगा और उससे सहानुभूति जताएगा। औरतों से बात करना भी अच्छा है, हालाँकि वे बेवक़ूफ़ होती हैं। उन्हें रुला देने के लिए तो भावुकता भरे दो शब्द ही काफ़ी होते हैं।

चलूँ ... ज़रा अपने घोड़े को देख लूँ -- योना सोचता है। सोने के लिए तो हमेशा वक़्त रहेगा। उसकी क्या परवाह!
वह अपना कोट पहन कर अस्तबल में अपने घोड़े के पास जाता है। साथ ही वह अनाज, सूखी घास और मौसम के बारे में सोचता रहता है। अपने बेटे के बारे में अकेले सोचने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाता है।

"
क्या तुम डट कर खा रहे हो?" योना अपने घोड़े से पूछता है... वह घोड़े की चमकती आँखें देख कर कहता है, "ठीक है, जमकर खाओ। हालाँकि हम आज अपना अनाज नहीं कमा सके, पर कोई बात नहीं। हम सूखी घास खा सकते हैं। हाँ, यह सच है। मैं अब गाड़ी चलाने के लिए बूढ़ा हो गया हूँ ... मेरा बेटा चला सकता था। कितना शानदार कोचवान था मेरा बेटा। काश, वह जीवित होता!"

एक पल के लिए योना चुप हो जाता है। फिर अपनी बात जारी रखते हुए कहता है, "हाँ, मेरे प्यारे, पुराने दोस्त। यही सच है। कुज्या योनिच अब नहीं रहा। वह हमें जीने के लिए छोड़ कर चला गया। सोचो तो ज़रा, तुम्हारा एक बछड़ा हो, तुम उसकी माँ हो और अचानक वह बछड़ा तुम्हें अपने बाद जीने के लिए छोड़ कर चल बसे। कितना दुख पहुँचेगा तुम्हें, है न?"

उसका छोटा-सा घोड़ा अपने मालिक के हाथ पर साँस लेता है, उसकी बात सुनता है और उसके हाथ को चाटता है।

अपने दुख के बोझ से दबा हुआ योना उस छोटे-से घोड़े को अपनी सारी कहानी सुनाता जाता है।

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सुशांत सुप्रिय


 
सम्पर्क - 
 
         A-5001,
         
गौड़ ग्रीन सिटी,
         
वैभव खंड,
         
इंदिरापुरम,
         
ग़ाज़ियाबाद-201014
         (
उ. प्र.)

 
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