रूचि भल्ला की कविताएँ



रूचि भल्ला


जीवन में तमाम गलतियाँ होती रहती हैं लेकिन मनुष्य इसीलिए मनुष्य है कि वह इन गलतियों से सबक लेने की कोशिश करता है. गलतियों से सीखता है. यही नहीं अहसास होने पर माफी भी माँग लेता है. रूचि भल्ला की माफीनामा कविता इसी तरह की कविता है जिसमें वह उन मासूम बच्चों से माफी मांगती हैं जिनको छोटे-छोटे अपराधों के चलते हिंसक तरीके से मारा-पीटा गया. जबकि बड़ों की ऐसी तमाम गलतियाँ हैं जो अक्षम्य हैं फिर भी न तो उनको दण्डित किया जा सकता है न ही इसका अहसास कराया जा सकता है. रूचि की इसी भावभूमि पर आधारित दो कविताएँ आज पहली बार के पाठकों के लिए.        

रूचि भल्ला की कविताएँ


माफ़ीनामा


मैं क्षमाप्रार्थी हूँ  
दुनिया के सारे बच्चों के प्रति  
कि उन्हें मारा गया 
छोटी-छोटी बातों पर हाथ उठाया 
उनकी छोटी गल्तियों पर उन्हें चोट देते रहे
जबकि बड़ी मामूली सी बातें थीं
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टूटने की तरह नहीं था  
उनके हाथ से काँच के गिलास का टूट जाना
 
और बच्चों! 
जब तुमने स्कूल का काम नहीं पूरा किया
लाख सिखाने पर पहाड़े नहीं याद किए
बाबू जी की छड़ी छुपा दी  
टीचर के बैठने से पहले उनकी कुर्सी हटा दी  
ताजा खिला गुलाब तोड़ डाला  
स्पैंलिग मिस्टेक पर नंबर गंवा दिए  
खो दिए ढेर पेंसिल रबर  
कॉपी के पन्नों से हवाई जहाज उड़ा डाले  
इतनी बड़ी तो नहीं थीं 
तुम्हारी गल्तियां  
कि हमने तुम्हें जी भर मारा

मेरे बच्चों आओ! 
मेरे पास आओ!  
मैं पोंछना चाहती हूँ तुम्हारे भीगे हुए चेहरे  
रखना चाहती हूँ तुम्हारी चोटों पर मरहम  
मेरे बच्चों आकर मुझे माफ करो
हमने अब तक सिर्फ मासूमियत को मारा  

हमने उन्हें नहीं मारा जहाँ उठाने थे अपने हाथ  
वहाँ ताकत नहीं दिखलाई  
जहाँ दिखलाना था 
अपने बाजुओं में दम  
वहाँ हम खड़े अवाक रह गए ...



न्यूटन ....सेब और प्यार का फ़लसफ़ा


जब तुम याद करते हो 
...... स्तालिन लेनिन, रूसो, गाँधी, सुकरात, टैगोर, सिकंदर को
मैं उस वक्त याद करती हूँ न्यूटन को
देखती हूँ सपने न्यूटन के

सपने में धरती 
मुझे सेब का बगीचा दिखती है
न्यूटन बैठा होता है एक पेड़ के नीचे  
और मैं उस पेड़ के पीछे
दुनिया वालों! 
जब तुम खरीद रहे थे सेब
उलट-पुलट कर उसे खा रहे थे
ले रहे थे स्वाद कश्मीरी डैलिशियस वाशिंगटन गोल्डन एप्पल का
ठीक उसी वक्त न्यूटन के हाथ भी एक सेब लगा था
सेब के ग्लोब को उंगली से घुमाते हुए  
उसे मुट्ठी में मंत्र मिला था 'ग्रैविटी फोर्स'
जब तुम सो रहे थे मीठा स्वाद लेकर गहरी नींद
न्यूटन ने सेब की आँख से आसमान को धरती पर झुकते हुए देखा   
धरती का आसमान की ओर खिंचाव देखा था 
तुम नहीं समझोगे इस प्यार को एडम ईव की संतानो!

सम्पर्क -
ई-मेल - ruchibhalla72@gmail.com

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.) 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सार्थक और सुन्दर कविताएँ!!
    बधाई 💐

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  2. बहुत सार्थक और सुन्दर कविताएँ!!
    बधाई 💐

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे बच्चों आकर मुझे माफ करो
    हमने अब तक सिर्फ मासूमियत को मारा

    हमने उन्हें नहीं मारा जहाँ उठाने थे अपने हाथ
    वहाँ ताकत नहीं दिखलाई
    जहाँ दिखलाना था
    अपने बाजुओं में दम
    वहाँ हम खड़े अवाक रह गए ...

    जवाब देंहटाएं
  4. दोनों ही बहुत बढ़िया कविताएँ...नए कथ्य, कहन और प्रतीक लिए सशक्त अभिव्यक्ति
    रूचि भल्ला जी को बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत अच्छी कविताएँ ...
      शुभकामनाएँ !! धन्यवाद पहलीबार ब्लाग .
      - कमल जीत चाैधरी .

      हटाएं
  6. दोनों कविताएँ बहुत सुन्दर

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