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प्रद्युम्न कुमार सिंह की कविताएँ

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प्रद्युम्न कुमार सिंह युवा कवि प्रद्युम्न कुमार सिंह ने कविता की राह पर चलना अभी शुरू ही किया है । पहले भी मैंने उनकी कविताएँ देखी थीं । तब उबड़-खाबड़ पन ज्यादा था लेकिन अब एक तरतीब उनकी कविताओं में दिखाई पड़ रही है । इन कविताओं को देख कर अब एक आश्वस्ति है कि उनके अन्दर एक बेहतर कवि के अंकुर फूट चले हैं । उनकी एक कविता है ‘ हत्यारा मुस्कुरा रहा ’ – इस कविता की पंक्तियाँ देखिए : ‘ चोट दे कर / लहा लोट हो कर / जीवन राग के बीच / जीवन गीत हो कर / हत्यारा मुस्कुरा रहा ’ । यह खुशी की बात है कि प्रद्युम्न में एक विचार है, विचारों को व्यक्त करने वाला एक भाव है और भाव को कविता में तब्दील करने वाला हुनर भी उनमें है । कविता की दुनिया में इस नवागत का स्वागत करते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं प्रद्युम्न की बिल्कुल टटकी कुछ कविताएँ । प्रद्युम्न कुमार सिंह की कविताएँ            तुम बार - बार कहते हो तुम बार - बार कहते हो बदल कर रहूंगा कब आयेगा वह   समय जब बदल जायेगी   हकीकत की   चहलकदमी और बदल जायेगी फितरत दुःख के सायों की पगडंडियां भी हो जायेंगी तब्दील मुख्य रास्तों