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बसन्त त्रिपाठी पत्र : एक अज्ञात मित्र को पत्र (संदर्भ : मुक्तिबोध)

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मुक्तिबोध यह वर्ष मुक्तिबोध का जन्म शताब्दी वर्ष है. मुक्तिबोध को ले कर तमाम बहस-मुबाहिसे हो रहे हैं. कुछ पक्ष में तो कुछ विपक्ष में. तमाम पत्र-पत्रिकाओं के अंक प्रकाशित हो रहे हैं. ऐसा होना सुखद है. मुक्तिबोध ने संघर्ष भरा जैसा जीवन जिया और जिसे अपने शब्दों में ढाला, कभी नहीं चाहा होगा कि उनकी आलोचना न हो. उन्हें यह पता था कि मठों और गढ़ों को तोड़ने का आह्वान जोखिम भरा है और उस क्रम में भी उन पर तमाम प्रहार होने हैं. इस लेखे से उनकी आलोचना भी एक तरह से उनकी विजय है. मुझे बुद्ध का कथन याद आता है जिसमें अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए वे कहते हैं – ‘मेरे उपदेशों को तर्क की कसौटी पर कसो. और अगर वे उस कसौटी पर खरे उतरें तभी उन्हें मानो. अन्यथा की स्थिति में समय के अनुसार उनमें संशोधन कर के स्वीकार करो.’ कवि बसंत त्रिपाठी ने ‘एक अज्ञात मित्र के पत्र’ के माध्यम से मुक्तिबोध के सन्दर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बातें उठाईं हैं. आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं बसन्त त्रिपाठी का यह पत्र.                           एक अज्ञात मित्र को पत्र (संदर्भ : मुक्तिबोध) बसंत त्रिपाठी

संदीप तिवारी की कविताएँ

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संदीप तिवारी रचनाकार जब केवल इस बिना पर अपने को विशिष्ट समझने लगता है कि वह लिखता है तो अपने को गलतफहमी में डाल रहा होता है. अपने को विशिष्ट समझना हमको सामान्य से बिल्कुल अलग कर देता है. और जब इतने विशिष्ट हो जाएँ कि आम लोगों, आम जनजीवन को हिकारत की नजर से देखने लगें तब रचना भी आपसे उतनी ही दूरी बना लेती है. किताबों से अलग हट कर भी एक बड़ी दुनिया है. वह दुनिया जिससे हमें अपने लेखन का खाद-पानी अबाध रूप से मिलता रहता है. संदीप तिवारी युवा कवि हैं. इनकी कविताओं में किताबों के बाहर जिन्दगी से टकरा कर कविताओं को पाने की जद्दोजहद स्पष्ट तौर पर दिखायी पड़ती है. तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं युवा कवि संदीप तिवारी की कविताएँ                     संदीप तिवारी की कविताएँ बुरा मत मानना बुरा मत मानना , कि लाखों के तादाद में पैदा कर रही हैं बेरोजगार , किताबें... बुरा मत मानना बुरा मत मानना , कि ख़यालों की दुनिया में पहुंचा कर   एक जीती-जागती दुनिया से   हमें अलग कर रही हैं , किताबें.... बुरा मत मानना बुरा मत मानना , कि दो कमजोर आँखें चश्में का