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सुशांत सुप्रिय की कहानी 'धोबी पाट'

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सुशान्त सुप्रिय  अगर आदमी के अन्दर जूनून हो तो वह असंभव लगने वाले काम को भी संभव कर दिखाता है । 'हार न मानने' की इसी फितरत ने मनुष्य को आज पृथिवी के सर्वश्रेष्ठ प्राणी के रूप में ला खड़ा किया है । कवि-कहानीकार सुशांत सुप्रिय ने पहलवान हरपाल के रूप में ऐसे ही एक चरित्र को गढ़ा है जो उनकी 'धोबीपाट'  कहानी का नायक है । तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं सुशान्त सुप्रिय की हालिया लिखी यह कहानी 'धोबीपाट' ।           धोबीपाट                      सुशांत सुप्रिय   हरपाल अब बूढ़ा हो चला था। कुश्ती के खेल में पैंतालीस साल के आदमी को बूढ़ा ही कहा जाएगा। हालाँकि उसकी देह पर ढलती उम्र का असर हुआ था , पर खंडहर बताते थे कि यह इमारत कभी बुलंद रही होगी। अपनी पूरी जवानी उसने कुश्ती के नाम कर दी। पटियाला से अम्बाला तक , अमृतसर से जम्मू तक और रोहतक से सिरसा तक क्षेत्रीय स्तर की ऐसी कोई कुश्ती प्रतियोगिता नहीं थी जिस में उसने विरोधियों को धूल नहीं चटाई। पूरे उत्तर भारत में उसने अपनी पहलवानी का डंका बजाया था। कुश्ती के इनामी दंगलों में वह कभी किसी पहलवान से न

प्रकर्ष मालवीय 'विपुल' की कविताएँ

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प्रकर्ष  मालवीय 'विपुल'   आज समूची दुनिया में एक अजीब उन्माद फैला हुआ है. जातिवाद, नस्लवाद, राष्ट्रवाद लोगों के सर पर चढ़ कर बोल रहे हैं. इन सब के बीच निरन्तर आहत हो रही है मनुष्यता. म्यांमार की बौद्ध जनता, जिसे आमतौर पर शांतिप्रिय और अहिंसक समझा जाता था, रोहिंग्या मुसलामानों के खून की प्यासी हो गयी है. रोहिंग्या लोगों को शरण देने के नाम पर भी आज राजनीति चरम पर है. कभी नैतिक रूप से माना जाता था कि शरणागत की रक्षा करना मेजबान का प्रमुख कर्तव्य होता है लेकिन अब यह सब बीती बातें हो गयीं लगती हैं. युवा कवि प्रकर्ष मालवीय 'विपुल' अपनी कविता 'रोहिंग्या रोहिंग्या कौन हो तुम?' में रोहिंग्या लोगों के साथ इसी बर्ताव को आधार बना कर कुछ ऐसे सवाल उठाते हैं जो राष्ट्रवादियों के लिए असुविधाजनक है. प्रकर्ष के रूप में इलाहाबाद में युवा पीढ़ी इलाहाबाद के उन संभावनाशील युवा कवियों में से एक हैं जिन पर हम एक कवि के रूप में भरोसा कर सकते हैं. तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं प्रकर्ष की कुछ नयी कविताएँ.                प्रकर्ष मालवीय 'विपुल' की कविताएँ रोह