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उमाशंकर परमार की किताब ‘प्रतिपक्ष का पक्ष’ पर प्रेम नंदन की लिखी समीक्षा

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उमाशंकर सिंह परमार आलोचना के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुके युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार की आलोचना की एक महत्वपूर्ण किताब प्रकाशित हुई है – ‘प्रतिपक्ष का पक्ष’। इस किताब का नाम ही सब कुछ बयां कर देता है। लोक को ले कर परस्पर विवाद की स्थिति रही है। इसके बावजूद जोखिम लेते हुए उमाशंकर ने लोक के सन्दर्भ में अपना जो पक्ष रखा है उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। हाँ, उस पर बहस जरुर हो सकती है। और साहित्य की यही मजबूती भी तो है जहाँ प्रतिपक्ष आज भी अत्यंत अहम् भूमिका निभाता है। उमाशंकर परमार को इस किताब की बधाई देते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं इस किताब की एक समीक्षा जिसे लिखा है युवा कवि प्रेम नंदन ने। तो आइए पढ़ते हैं यह समीक्षा।      ‘प्रतिपक्ष का पक्ष’ – लोकधर्मिता के नये प्रतिमान प्रेम नंदन आलोचना महज प्रशंसा या कमियाँ तलाशने का उपक्रम नहीं है; बल्कि किसी भी रचना या रचनाकार को समग्रता से समझने का एक साहित्यिक उपादान है। आज जब आलोचना अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है और मात्र ठकुरसुहाती में तब्दील होती जा रही है, ऐसे में आलोचना के क्षेत्र में भी तोड़-फोड़ की जरूरत लम्

चंद्रेश्वर की कविताएँ

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  चन्द्रेश्वर  परिचय 30 मार्च 1960 को बिहार के बक्सर जनपद के एक गाँव आशा पड़री में जन्म।   पहला कविता संग्रह ' अब भी ' सन् 2010 में प्रकाशित। एक पुस्तक ' भारत में जन नाट्य  आन्दोलन ' 1994 में प्रकाशित।   ' इप्टा आन्दोलन : कुछ साक्षात्कार ' नाम से एक मोनोग्राफ ' कथ्यरूप ' की ओर से 1998 में प्रकाशित।   दूसरा कविता संग्रह ' सामने से मेरे ' रश्मि प्रकाशन से हाल ही में प्रकाशित। वर्तमान में बलरामपुर , उत्तर प्रदेश में एम. एल. के. पी. जी. कॉलेज में हिंदी के  एसोसिएट प्रोफेसर।       आज लोगों के दिल-दिमाग में एक अजीब सी हवस भरी हुई है । ज्यादा से ज्यादा धन- संपत्ति अपने पास कर लेने की हवस ही मुख्यतः आज के उस भ्रष्टाचार की जड़ है  जो समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दे रही है । समाज का उच्च वर्ग जिसमें  नेता और नौकरशाह, ठेकेदार, दलाल आदि शामिल हैं इसमें पूरी तरह मुब्तिला है।  जनसेवा के नाम पर लूट-पाट का बाजार आज कुछ ज्यादा ही गरम दिख रहा है। ऐसे  में महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध और कबीर याद आते हैं। कबीर का यह ख्यात दोहा  याद