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सुभाष राय की कविताएँ

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यह एक कड़वी सच्चाई है कि धर्म और राष्ट्र के नाम पर दुनिया भर में जितना अधिक रक्तपात हुआ उतना किसी और नाम पर नहीं. वास्तव में धर्म की खोज मानव विकास के शुरुआती दौर में उन दार्शनिक, आध्यात्मिक, नैतिक सवालों की खोज के क्रम में की गयी जो उस समय के मनुष्य के लिए पूरी तरह अबूझ थे. विकास की प्रक्रिया में जब साम्राज्य बनने शुरू हुए तो उसने धर्म को एक ऐसे साधन के रूप में बरतना शुरू कर दिया जो उसे और अधिक सुरक्षित तथा अभेद्य बना सके. इसी क्रम में राजत्व को ‘दैवी सिद्धान्त’ का ताना बाना ओढ़ाया गया. इसी क्रम में पुरोहितों ने यह बात लोगों के मन में भरी कि राजा गलतियाँ नहीं करता. यानी वह जो करता है सब सही करता है. ईश्वर के लिए भी यही कहा जाता है. पुनर्जागरण के पश्चात् यूरोप में उभर कर सामने आयी राष्ट्र-राज्य की अवधारणा को धर्म की कड़ी चुनौती से जूझना पड़ा लेकिन उसके शासकों ने भी धर्म को एक औजार के रूप में भरपूर इस्तेमाल किया. धर्म अपनी समूची कृतियों विकृतियों के साथ आज भी मौजूद है. कहाँ, क्या, कब, कैसे, क्यों, किससे का सच जानने की प्रक्रिया में विज्ञान के विकास ने इसके खोखले ढांचे पर कड़ा